
जं जस्स संठाणं चरिमसरीरस्स जोगजहणम्मि ।
तं संठाणं तस्स दु जीवघणं होइ सिद्धस्स॥2142॥
योग निरोध समय में जैसा होता अन्तिम देहाकार ।
जीव प्रदेशों का वैसा ही होता है घनमय आकार॥2142॥
अन्वयार्थ : योगों के त्याग के समय में अयोगी गुणस्थान के अवसर में जैसा चरम शरीर का संस्थान/आकार होगा, उसी संस्थान रूप जीव के प्रदेशों के घनरूप सिद्धों का आकार होता है ।
सदासुखदासजी