जं णत्थि बंधहेदंु देहग्गहणं ण तस्स तेण पुणो ।
कम्मकलुसो हु जीवो कम्मकदं देहमादियदि॥2144॥
नहीं बन्ध-हेतु सिद्धों को अतः पुनः नहिं देह धरें ।
क्योंकि कर्म से बद्ध जीव ही कर्मजन्य तन धरते हैं॥2144॥
अन्वयार्थ : क्योंकि कर्म से मलिन जीव ही कर्मकृत देह को ग्रहण करता है और सिद्ध भगवान के देह के बंध का कारण कर्म नहीं, इसलिए देह का ग्रहण नहीं है ।

  सदासुखदासजी