
कज्जाभावेण पुणो अच्चंतं णत्थि फंदणं तस्स ।
ण पओगदो वि फंदणमदेहिणो अत्थि सिद्धस्स॥2145॥
कुछ करना नहिं शेष अतः है हलन-चलन अत्यन्त अभाव ।
अशरीरी है अतः वायु से भी नहिं स्पन्दन सद्भाव॥2145॥
अन्वयार्थ : और उन सिद्ध भगवन्तों को हलन-चलनरूप कार्य करना रहा नहीं, इसलिए देहरहित सिद्ध भगवान को प्रयोग से हलन-चलन सर्वथा नहीं है ।
सदासुखदासजी