पं-सदासुखदासजी
ते लोक्कमत्थयत्थो तो सो सिद्धो जगं णिरवसेसं ।
सव्वेहिं पज्जएहिं य संपुण्णं सव्वदव्वेहिं॥2147॥
तीन लोक के शीश विराजे परमेष्ठी सिद्ध भगवान ।
सकल द्रव्य अरु पर्यायों से युक्त देखते सकल जहान॥2147॥
सदासुखदासजी