
पस्सदि जाणदि य कहा तिण्ण वि काले सपज्जाए सव्वे ।
तह वा लोगमसेसं पस्सदि भयवं विगदमोहो॥2148॥
तीन काल की पर्यायों से युक्त समस्त द्रव्य समुदाय ।
तथा अलोकाकाश जानते देखें मोह रहित भगवान॥2148॥
अन्वयार्थ : त्रैलोक्य के मस्तक पर विराजमान सिद्ध परमेष्ठी समस्त द्रव्यों और समस्त पर्यायों सहित संपूर्ण लोक को जानते हैं और देखते हैं तथा पर्यायों सहित समस्त भूत-भविष्यत-वर्तमान कालों को एवं समस्त अलोक को मोहरहित जानते और देखते हैं ।
सदासुखदासजी