
गदरागदोसमोहो विभवो णिरुस्सओ विरओ ।
बुधजणपरिगीदगुणो णमंसणिज्जो तिलोगस्स॥2150॥
मोह-राग-रुष दूर किये हैं उत्कण्ठा-भय-मद-रज हीन ।
बुधजन गुण गाते हैं जिनको वे त्रिलोक के आदरणीय॥2150॥
अन्वयार्थ : नष्ट हुए हैं राग-द्वेष-मोह जिसके, भयरहित, मदरहित, उत्कंठारहित, कर्मरज से रहित और ज्ञानीजनों द्वारा गाये गये हैं गुण जिसके, ऐसे सिद्ध भगवान हैं । वे तीन लोकों के जीवों द्वारा नमस्कार करने योग्य हैं ।
सदासुखदासजी