
णिव्वावइत्तु संसारमहग्गिं परमणिव्वुदिजलेण ।
णिव्वादि सभावत्थो गदजाइजरामरणरोगो॥2151॥
परम निवृत्तिरूप नीर से जग-अग्नि को शान्त किया ।
जन्म जरा मृतु रोग रहित हो निज थिर हो निर्वाण लिया॥2151॥
अन्वयार्थ : सर्वोत्कृष्ट त्यागरूप जल से संसाररूप महान अग्नि को दूर करके, बुझाकर जन्म-मरण-जरा-शोक से रहित हो अपने निजस्वभाव में स्थिर हो निर्वाण को प्राप्त होते हैं ।
सदासुखदासजी