
जावं तु किंचि लोए सारीरं माणसं च सुहदुक्खं ।
तं सव्वं णिज्जिण्णं असेसदो तस्स सिद्धस्स॥2152॥
जग में जितना भी शारीरिक और मानसिक सुख-दुःख है ।
सिद्धों को समस्त सुख-दुःख वह पूर्णतया सुविनष्ट कहें॥2152॥
अन्वयार्थ : लोक में जितने शरीरसम्बन्धी, मनसम्बन्धी सुख-दु:ख हैं, वे सभी उन सिद्ध भगवान के निर्जरा को प्राप्त हो गये हैं ।
सदासुखदासजी