
जं णत्थि सव्वबाधाउ तस्स सव्वं च जाणइ जदो से ।
जं च गदज्झवसाणो परमसुही तेण सो सिद्धो॥2153॥
क्योंकि नहीं कोई बाधा अब अतः जानते सकल पदार्थ ।
अध्यवसान विहीन अतः हैं परम सुखी रहते भगवान॥2153॥
अन्वयार्थ : सिद्ध परमेष्ठी परम सुखी अर्थात् उत्कृष्ट सुखी हैं ।
सदासुखदासजी