परमिढि्ंढ पत्ताणं मणुसाणं णत्थि तं सुहं लोए ।
अव्वाबाध मणोवमपरम सुहं तस्स सिद्धस्स॥2154॥
सिद्धों को निर्बाध परम सुख अनुपम प्रकट हुआ जैसा ।
परम ऋद्धि चक्रित्व आदि को प्राप्त मनुज को नहिं वैसा॥2154॥
अन्वयार्थ : इस लोक में परम ऋद्धि को प्राप्त मनुष्यों को जो सुख नहीं है; वह सुख बाधारहित, उपमारहित सर्वोत्कृष्ट सिद्धों को है ।

  सदासुखदासजी