देविंदचक्कवट्टी इंदियसोक्खं च जं अणुहवंति ।
सद्द रस रूवगंधप्फरिसप्पयमुत्तमं लोए॥2155॥
शब्द रूप रस गन्ध और स्पर्श जन्य जो सुख भोगें ।
उत्तम पुरुष लोक में जिनको देव-इन्द्र नर-इन्द्र कहें॥2155॥

  सदासुखदासजी