+ उसे ही और कहते हैं - -
जं सव्वे देवगणा अच्छर सहिया सुहं अणुहवंति ।
तत्तो वि अणंतगुणं अव्वावाहं सुहं तस्स॥2157॥
सुर गण भोगें जो इन्द्रिय सुख सुरी अप्सराओं के संग ।
बाधा रहित अनन्त गुणा सुख भोगें सदा सिद्ध भगवन्त॥2157॥
अन्वयार्थ : समस्त देवों के समूह अप्सराओं सहित जो सुख अनुभवते हैं, उससे अनन्त गुणा अव्याबाध सुख उन सिद्धों को जानना ।

  सदासुखदासजी