
तीसु वि कालेसु सुहणि जाणि माणुसतिरिक्खदेवाणं ।
सव्वाणि ताणि ण समाणि तस्स खणमित्तसोक्खेण॥2158॥
नर तिर्यंच तथा देवों को जैसा सुख हो तीनों काल ।
एक समयवर्ती सिद्धों के सुख-सम कभी न हो सकता॥2158॥
अन्वयार्थ : तीन काल सम्बन्धी मनुष्य, तिर्यंच, देवों के जो समस्त सुख हैं, वे सिद्धों के एक क्षणमात्र सुख के समान भी नहीं हैं ।
सदासुखदासजी