इय सो खाइयसम्मत्तसिद्धदाविरियदिट्ठिणाणेहिं ।
अच्चंतिगेहिं जुत्तो अव्वावाहेण य सुहेण॥2163॥
इसप्रकार वे क्षायिक समकित दर्शन ज्ञान वीर्य सुखखान ।
आत्यन्तिक अविनाशी अव्याबाध सुखों से युक्त महान॥2163॥
अन्वयार्थ : इसप्रकार वे भगवान सिद्धपरमेष्ठी अन्तरहित, क्षायिकसम्यक्त्व, सिद्धत्व, अनन्तवीर्य, अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान तथा बाधारहित सुख से युक्त सिद्धालय में विराजमान हैं ।

  सदासुखदासजी