जम्मणमरणजलोघं दुक्खपरकिलेससोगदी चीयं ।
इय संसार समुद्दं तरंति चदुरंगणावाए॥2165॥
जन्म मरण जल तथा दुःख संक्लेशरूप भँवरें जिसमें ।
वह भवदधि तरते हैं मुनिवर चौ आराधन नौका से॥2165॥
अन्वयार्थ : जन्म-मरण रूप है जल का समूह जिसमें और दु:ख परिक्लेश शोकरूप हैं लहरियाँ जिसमें, ऐसे संसार-समुद्र को सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, सम्यक् तपरूप चतुरंग नाव द्वारा तिरते हैं ।

  सदासुखदासजी