
एवं आराधित्ता उक्कस्साराहणं चदुक्खंधं ।
कम्मरयविप्पमुक्का तेणेव भवेण सिज्झंति॥2167॥
इसप्रकार चारों आराधन आराधें जो भवि उत्कृष्ट ।
तद्भव में ही सिद्धि प्राप्त करते हैं कर्म कलंक विनष्ट॥2167॥
अन्वयार्थ : इसप्रकार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र, सम्यक् तपरूप उत्कृष्ट आराधना को आराध कर कर्मरजरहित हुए उस ही भव से सिद्ध होते हैं ।
सदासुखदासजी