
आराधयित्तु धीरा मज्झिममाराहणं चदुक्खंधं ।
कम्मरयविप्पमुक्का तच्चेण भवेण सिज्झंति॥2168॥
धीर पुरुष मध्यम आराधन चार तरह की आराधें ।
तीजें भव में कर्म कलंक विनष्ट करें अरु शिव पावें॥2168॥
अन्वयार्थ : और चतुष्कंधरूप मध्यम आराधना को आराधकर धीर-वीर पुरुष तीन भव करके कर्मरजरहित सिद्ध होते हैं ।
सदासुखदासजी