आराधयित्तु धीरा जहण्णमाराहणं चदुक्खंधं ।
कम्मरयविप्पमुक्का सत्तमजम्मेण सिज्झंति॥2169॥
धीर पुरुष जघन्य आराधन चार तरह की आराधें ।
सप्तम भव में कर्म कलंक विनष्ट करें अरु शिव पावें॥2169॥
अन्वयार्थ : और चतुष्कंधरूप जघन्य आराधना को आराधकर धीर-वीर पुरुष सप्त जन्म करके कर्मरजरहित सिद्ध होते हैं ।

  सदासुखदासजी