आराधणं असेसं वण्णेदुं होज्ज को को पुण समत्थो ।
सुदकेवली वि आराधणं असेसं ण वण्णिज्ज॥2171॥
आराधना समस्त कथन में कहो अल्पश्रुत कौन समर्थ ।
आराधना पूर्ण कहने में श्रुतकेवलि भी नहीं समर्थ॥2171॥
अन्वयार्थ : सम्पूर्ण आराधना का वर्णन करने में अन्य कौन समर्थ होगा ?

  सदासुखदासजी