
पुव्वाययरियणिबद्धा उवजीवित्ता इमा ससत्तीए ।
आराधणा सिवज्जेण पादिलभोइणा रइदा॥2173॥
पूर्वाचायाब से निबद्ध आराधन का लेकर आधार ।
निज शक्ति अनुसार रची यह पाणित भोजी शिव-आचार्य॥2173॥
अन्वयार्थ : आर्य जिननन्दी गणी, सर्वगुप्त गणी, आर्य मित्रनन्दी - इन तीन आचार्य के चरणों के निकट आराधना के सूत्र और आराधना के सूत्रों का अर्थ अच्छी तरह संशयरहित जानकर और पूर्ववर्ती आचार्य कृत रचित जो आराधना के सूत्रों की रचना, उनका सेवन करके और करपात्र में भोजन करनेवाला मैं शिवाचार्य, मैंने अपनी शक्तिप्रमाण यह रची है । यह भगवान अरहन्त देवों द्वारा आराधी गई है, इसलिए इसे कहते हैं । यह ग्रन्थ मैंने अपने अभिप्राय से अपनी रुचि अनुसार/मनमाना नहीं रचा है । अनादिनिधन द्वादशांगरूप परमागम का अर्थ आराधना के सूत्रों में राग-द्वेषरहित वीतरागी सम्यग्ज्ञानी गुरुओं की परिपाटी से चला आया है । उन सूत्रों के शब्द और अर्थ जिननन्दी गणी, सर्वगुप्त गणी और मित्रनन्दी गणी - इन तीन गुरुजनों के निकट, शिवाचार्य नामक दिगम्बर मुनि मैंने अच्छी तरह जानकर, पूर्व के सूत्रों का संशयरहित सेवन करके ग्रन्थ की रचना की है ।
सदासुखदासजी