आराधणा भगवदी एवं भत्तीए वण्णि दा संती ।
संघस्स सिवज्जस्स य समाधिवरमुत्तमं देउ॥2175॥
भक्ति सहित वर्णित यह आराधना भगवती मुनिगण को ।
मुझ शिवार्य को सर्वाेत्कृष्ट समाधि प्राप्त हो यह वर दो॥2175॥
अन्वयार्थ : ऐसे भक्तिपूर्वक वर्णन करके यह , समस्त संघ को और शिवार्य जो मैं शिवाचार्य को उत्तम समाधि, जो समस्त लोक को प्रार्थनीय है, बाधारहित पण्डितपण्डितमरण से उत्पन्न - ऐसी सिद्धि प्रदान करो ।

  सदासुखदासजी