+ भगवान के चरण-कमलों के आराधन से मोक्षलक्ष्मी की प्राप्ति -
इन्द्रस्य प्रणतस्य शेखरशिखारत्नार्कभासा नख-
श्रेणीतेक्षणबिम्बशुम्भदलिभृद्दूरोल्लसत्पाटलम्
श्रीसद्माङ्घ्रियुगं जिनस्य दधदप्यम्भोजसाम्यं रज-
स्त्यक्तं जाड्यहरं परं भवतु नश्चेतोऽर्पितं शर्मणे ॥4॥
नम्रीभूत सुरेन्द्र मुकुट की, रत्नप्रभा से चमक रहे ।
चरण-कमल में सुरपतियों के, नेत्र-भ्रमर हैं नित सजते ॥
पाद-पद्म-रजरहित और श्रीयुक्त साम्य है दोनों में ।
किन्तु चरण-युगल जाड्यहर, सुखकर सदा बसे मन में ॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार कमलों पर भ्रमर गुंजार करते हैं उस ही प्रकार भगवान के चरण कमलों को बड़े—बड़े इन्द्र आकर नमस्कार करते हैं तथा उनके मुकुट के अग्रभाग में लगे हुये जो रत्न उनकी प्रभा सहित भगवान के चरणों के नखों में उन इन्द्रों के नेत्रों के प्रतिबिम्ब पड़ते हैं इसलिये भगवान के चरणों पर भी इन्द्रों के नेत्ररूपी भौंरे निवास करते हैं— तथा जिस प्रकार कमल कुछ सफेदी लिये लाल होते हैं उस ही प्रकार भगवान के चरण कमल भी कुछ सफेदी लिये हुए लाल वर्ण है तथा जिस प्रकार कमलों में लक्ष्मी रहती हैं उस ही प्रकार भगवान के चरणकमल भी लक्ष्मी के स्थान है अर्थात् चरण कमलों के आराधन करने से भव्य जीवों को उत्तम मोक्षरूपी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। इसलिये यद्यपि कमल तथा भगवान के चरण कमल इन गुणों से समान है तथापि कमल धूलिसहित है तथा जड़ है और भगवान के चरणकमल धूलि (पाप) रहित है तथा जड़ता के दूर करने वाले हैं अत: कमलों से भी उत्कृष्ट भगवान के चरणकमल सदा मेरे मन में स्थित रहो तथा कल्याण करो।