+ पाप-सन्ताप को दूर करने वाले श्री शान्तिनाथ भगवान के चरण कमल -
जयति जगदधीशः शान्तिनाथो यदीयं
स्मृतमपि हि जनानां पापतापोपशान्त्यै
विबुधकुलकिरीटप्रस्फु रन्नीलरत्न-
द्युतिचलमधुपालीचुम्बितं पादपद्मम् ॥5॥
सुर किरीट के नीलरत्न की, प्रभा-भ्रमरयुत चरण-कमल ।
स्मृति से ही पाप-ताप-क्षय, होंवे शान्तिनाथ जयवन्त ॥
अन्वयार्थ : नानाप्रकार के देवताओं के जो मुकुट उनमें लगी हुई जो चमकती हुई नीलमणि उनकी जो प्रभा वही जो चलती हुई भ्रमरों की पंक्ति उस पर सहित जिस शान्तिनाथ भगवान के चरणकमल स्मरण किये हुवे ही समस्त जनों के पाप तथा संताप को दूरकर देते हैं ऐसे वे तीन लोक के स्वामी श्री शांतिनाथ भगवान सदा जयवंत हैं