+ सभी जीव परस्पर कुटुम्बी : कौन किसे मारे? -
संसारे भ्रमतश्चिरं तनुभृतः के के न पित्रादयो
जातास्तद्वधमाश्रितेन खलु ते सर्वें भवन्त्याहताः
पुंसात्मापि हतो यदत्र निहतो जन्मान्तरेषु ध्रुवम्
हन्तारं प्रतिहन्ति हन्त बहुशः संस्कारतो नु क्रुधः ॥9॥
जग में चिर भ्रमते प्राणी का, कौन न मात-पितादि हुआ ।
अत: किसी को मारे कोई, तो अपनों को ही मारा ॥
तथा स्वयं को मारा उसने, क्योंकि मृतक संग जाए क्रोध ।
जन्मान्तर में जागृत हो, संस्कार हनें हत्यारे को ॥
अन्वयार्थ : चिरकाल से संसार में भ्रमण करते हुवे इस दीन प्राणी के कौन—कौन माता पिता भाई आदिक नहीं हुवे ? अर्थात् सर्व ही हो चुके इसलिये यदि कोई प्राणी किसी जीव को मारे तो समझना चाहिये कि उसने अपने कुटुम्बी को ही मारा तथा अपनी आत्मा का भी उसने घात क्योंकि यह नियम है जो मनुष्य किसी दीन प्राणी को एक बार मारता है उस समय उसे मरे हुवे जीव के क्रोधादि की उत्पत्ति होती है तथा जन्मान्तर में उसका संस्कार बैठा रहता है इसलिये जिससमय कारण पाकर उस मृतप्राणी का संस्कार प्रकट हो जाता है उस समय वह हिंसक को (अर्थात् पूर्वभव में अपने मारने वाले जीव को) अनेक बार मारता है इसलिये ऐसे दुष्ट fहंसक के लिये धिक्कार हो