+ जीवनदान : सबसे बड़ा दान -
त्रैलोक्यप्रभुभावतो ऽपि सरुजो ऽप्येकं निजं जीवितं
प्रेयस्तेन बिना स कस्य भवितेत्याकांक्षतः प्राणिनः ।
निःशेषव्रतशीलनिर्मलगुणाधारात्ततो निश्चितं
जन्तोर्जीवितदानतस्त्रिभुवने सर्वप्रदानं लघु ॥10॥
कोई दरिद्री त्रिभुवन की, सम्पति लेकर भी प्राण न दे ।
प्राण बिना कैसे भोगेंगे, अत: प्राण सबको प्यारे ॥
अत: सुनिश्चित शील-व्रतादि निर्मल गुण आधार कहे ।
सब दानों में श्रेष्ठ दान है, प्राणदान ही त्रिभुवन में ॥
अन्वयार्थ : यदि किसी दरिद्री से भी यह बात कही जावे कि भाई तू अपने प्राण दे दे तथा तीन लोक की संपदा ले ले तब वह यही कहता है कि मैं ही मर जाऊंगा तो उस संपदा को कौन भोगेगा अत: तीनलोक की संपदा से भी प्राणियों को अपने प्राण प्यारे हैं। इसलिये समस्त व्रत तथा शीलादि निर्मलगुणों का स्थानभूत जो यह प्राणी का जीवितदान है उसकी अपेक्षा संसार में सर्वदान छोटे हैं यह बात भलीभांति निश्चित है।