आस्तामेतद्यदिह जननीं वल्लभां मन्यमाना-
निन्द्याश्रेष्टा विदधति जना निस्त्रपा: पीतमद्या: ।
तत्राधिक्यं पथि निपतिपा यत्किरत्सारमेयाद्-
वक्त्रे मूत्रं मधुरमधुरं भाषमाणा: पिवन्ति ॥22॥
क्या आश्चर्य कि मदिरा पीकर, माता को पत्नी मानें ।
हो निर्लज्ज नरों में विविध, भाँति के खोटे कार्य करें ॥
किन्तु अधिक आश्चर्य कि जब वे, मारग में ही गिर जाते ।
कुत्ते मूतें मुख में पर वे, मधुर-मधुर कह पी जाते ॥
अन्वयार्थ : आचार्य कहते हैं कि मदिरा के पीने वाले मनुष्य यदि निर्लज्ज होकर अपनी माता को स्त्री मानें तथा उसके साथ नाना प्रकार की खोटी चेष्टा करें तो यह बात तो कुछ बात नहीं किन्तु सब से अधिक बात यह है कि मद्य के नशे में आकर जब मार्ग में गिर जाते हैं तथा जिस समय उनके मुख में कुत्ते मूतते हैं उसको मिष्ट—२ कहते हुवे तत्काल गटक जाते हैं।