+ वेश्या की अत्यन्त निन्दनीय दशा -
रजकशिलासदृशीभि: कुक्कुरकर्परसमानचरिताभि: ।
गणिकाभिर्यदि सङ्ग: कृतमिह परलोकवार्ताभि: ॥24॥
धोबी की शिला-सदृश जो, श्वान हेतु कंकाल अहो! ।
वेश्या संग रमने वाले के, नष्ट हुए हैं दोनों लोक ॥
अन्वयार्थ : जो वेश्या धोबी की कपड़े पछीटने की शिला के समान है अर्थात् जिसप्रकार शिला पर समस्त प्रकार के कपड़े लाकर पछीटे जाते हैं उसही प्रकार इस वेश्या के साथ भी समस्त निकृष्ट से निकृष्ट जाति के मनुष्य आकर रमण करते हैं अथवा दूसरा इसका आशय यह भी है कि जिस प्रकार शिला पर समस्त प्रकार के कपड़ों के मैल का संचय होता है उस ही प्रकार वेश्यारूपी शिला पर भी नाना जातियों के मनुष्य के वीर्यरूपी मैल का समूह इकट्ठा होता है तथा जो वैश्या कुलाओं के लिए कपाल के समान है अर्थात् जिस प्रकार मरे हुये मनुष्य के कपाल पर लड़ते लड़ाते नाना प्रकार के कुत्ते इकट्ठे होते हैं उस ही प्रकार इस वेश्या पर भी नाना जातियों के मनुष्य आकर टूटते हैं तथा नाना प्रकार के परस्पर में कलह करते हैं इसलिये ऐसी निकृष्ट वेश्याओं के साथ यदि कोई पुरूष संबन्ध करे तो समझ लेना चाहिये कि उसका परलोक उत्तम हो चुका।