+ दुष्ट पुरुषों के मिष्ट वचनों से सावधान! -
(वसंततिलका)
स्निग्धैरपि व्रजत मा सह संगमेभिः
क्षुद्रैः कदाचिदपि पश्यत सर्षपाणाम् ।
स्नेहो ऽपि संगतिकृतः खलताश्रितानां
लोकस्य पातयति निश्चितमश्रु नेत्रात् ॥35॥
मृदुभाषी हो तो भी दुष्टों से न कभी रखना सम्बन्ध ।
सरसों तेल लगे किञ्चित् भी, तो नहिं होते आँसू बन्द ॥
अन्वयार्थ : यह नियम है कि दुष्ट पुरुष, जब अपना काम निकालना चाहते हैं, तब मीठे वचनों से ही निकालते हैं; किन्तु आचार्य इस बात का उपदेश देते हैं कि दुष्ट पुरुष, चाहे जैसे सरल तथा मिष्टवादी क्यों न हों? लेकिन उनके साथ सज्जनों को कदापि सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए क्योंकि हम इस बात को प्रत्यक्ष देखते हैं कि जब सरसों खलरूप में परिणत हो जाती हैं, उस समय उससे निकला हुआ तेल, आँखों में लगते ही मनुष्यों को अश्रुपात होता है ।