+ दुष्ट पुरुषों का सम्पर्क भी बुरा -
(मालिनी)
इह वरमनुभूतं भूरि दारिद्य्रदुःखं
वरमतिविकराले कालवक्त्रे प्रवेशः ।
भवतु वरमितो ऽपि क्लेशजालं विशालं
न च खलजनयोगाज्जीवितं वा धनं वा ॥37॥
निर्धनता या मर जाने का, दु:ख भोगना श्रेष्ठ अरे! ।
अन्य क्लेश भी उत्तम पर, नहिं दुष्ट-संग धन या जीवन ॥
अन्वयार्थ : संसार में दरिद्रता का दुःख भोगना अच्छा है अथवा मर जाना अच्छा है अथवा और भी सांसारिक नाना प्रकार की पीड़ाओं का सहन करना उत्तम है; किन्तु दुष्टजन के साथ जीना तथा दुष्टजन के साथ धन कमाना उत्तम नहीं ।