+ मुनिधर्म में पंचाचार, दश धर्म, बारह तप, मूलगुण, उत्तरगुण आदि का पालन -
(शार्दूलविक्रीडित)
आचारो दशधर्मसंयमतपोमूलोत्तराख्या गुणाः
मिथ्यामोहमदोज्झनं शमदमध्यानाप्रमादस्थितिः ।
वैराग्यं समयोपबृंमहणगुणा रत्नत्रयं निर्मलं
पर्यन्ते च समाधिरक्षयपदानन्दाय धर्मो यतेः ॥38॥
पंचाचार धर्म दश संयम तप अरु मूलोत्तर-गुणखान ।
मिथ्या मोह तथा मद त्यागी, शम-दम-अप्रमाद अरु ध्यान ॥
निर्मल रत्नत्रय वैराग्य, तथा शासन-वर्धक गुणवान ।
मरण-समाधि सुशोभित मुनिधर्म, अक्षय आनन्ददायक जान ॥
अन्वयार्थ : जिस धर्म में दर्शनाचार, ज्ञानाचार, चरित्राचार, तपाचार व वीर्याचार - इस प्रकार पाँच प्रकार के आचार; उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य - इस प्रकार का दश धर्म; बारह प्रकार का संयम, बारह प्रकार का तप, अट्ठाईस प्रकार के मूलगुण, चौरासी लाख उत्तरगुण, मिथ्यात्व-मोह-मद का त्याग, शम-दम-ध्यान तथा प्रमादरहित स्थिति, वैराग्य, जिनशासन की महिमा के बढ़ाने वाले अनेक गुण, सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र स्वरूप निर्मल रत्नत्रय तथा अन्त में समाधि विद्यमान है - ऐसा मुनियों का धर्म, अक्षयपद के आनन्द के लिए है ।