+ स्थितिभोजन मूलगुण का उद्देश्य -
(शार्दूलविक्रीडित)
यावन्मे स्थितिभोजनेऽस्ति द्रढता पाण्योश्च संयोजने
भुञ्जे तावदहं रहाम्यथ विधावेषा प्रतिज्ञा यतेः ।
काये ऽप्यस्पृहचेतसो ऽन्त्यविधिषु प्रोल्लासिनः सन्मतेः
न ह्येतेन दिवि स्थितिर्न नरके संपद्यते तद्विना ॥43॥
जब तक तन में खड़े-खड़े, आहार-ग्रहण की शक्ति रहे ।
तब तक भोजन करें अन्यथा नहीं, प्रतिज्ञा यति करें ॥
तन ममत्व तज जो समाधि-विधि में अति उत्साहित होते ।
वे यति जाते स्वर्ग अन्यथा, नरकों में स्थिति करते ॥
अन्वयार्थ : जो मुनिगण, अपने शरीर से भी ममत्वरहित हैं, समाधिमरण करने में उत्साही हैं तथा श्रेष्ठ ज्ञान के धारक हैं; उनकी यह कड़ी प्रतिज्ञा रहती है कि जब तक हमारी खड़े होकर आहार लेने की तथा दोनो हाथों को जोड़ने की शक्ति मौजूद है, तब तक ही हम भोजन करेंगे, नहीं तो कदापि नहीं करेंगे; जिससे उनको स्वर्ग की प्राप्ति होती है तथा नरक में नहीं जाना पड़ता, किन्तु जो इस प्रतिज्ञा से रहित हैं, उनको अवश्य नरक जाना पड़ता है ।