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भ्रान्तिप्रदेषु बहुवर्त्मसु जन्मकक्षे;
पन्थानमेकममृतस्य परं नयन्ति ।
ये लोकमुन्नतधियः, प्रणमामि तेभ्यः;
तेनाप्यहं जिगमिषुर्गुरुनायकेभ्यः॥60॥
भ्रान्तिरूप उन्मार्गों में से, जो शिवपथ में ले जाते ।
श्रेष्ठ ज्ञानधारी गुरु को, शिवपुर-वाञ्छक हम नमन करें ॥
अन्वयार्थ : जो गुरु, इस संसार में भ्रम उत्पन्न करने वाले अनेक मार्गों में से लोक को सुख देने वाले एक मोक्षमार्ग में ले जाते हैं तथा स्वयं उच्च ज्ञान के धारक हैं - ऐसे उन श्रेष्ठ गुरुओं को, उसी मार्ग में जाने की इच्छा करने वाला मैं मस्तक झुका कर नमस्कार करता हूँ ।