+ सम्यग्दर्शन के धारक परिषहजयी मुनियों की महिमा -
(वसन्ततिलका)
वज्रे पतत्यपि भयद्रुतविश्वलोक;
मुक्ताध्वनि प्रशमिनो न चलन्ति योगात् ।
बोधप्रदीप-हत-मोह-महान्धकाराः;
सम्यग्दृशः किमुत शेषपरीषहेतुः ॥63॥
जिसकी वज्रपात ध्वनि से, भयभीत जगत् निज मार्ग तजे ।
किन्तु प्रशम-रस-लीन मुनीश्वर, ध्यान योग से नहीं डिगें ॥
सम्यग्ज्ञान दीप से जो मुनि, मोह-तिमिर का नाश करें ।
अन्य परीषह से वे सम्यक्, दृगधारी क्या विचलित हों? ॥
अन्वयार्थ : जिस वज्र के शब्द के भय से चकित होकर समस्त लोक, मार्ग को छोड़ देते हैं - ऐसे वज्र के गिरने पर भी जो शान्तात्मा मुनि, ध्यान से किञ्चित् भी विचलित नहीं होते, जिन्होंने सम्यग्ज्ञानरूपी दीपक से समस्त मोहान्धकार का नाश कर दिया है और जो सम्यग्दर्शन के धारक हैं; वे मुनि, परीषहों को जीतने में कब चलायमान हो सकते हैं?