+ सम्यक् रत्नत्रय की महिमा -
(आर्या)
भवभुजगनागदमनी, दुःखमहादावशमनजलवृष्टिः ।
मुक्तिसुखामृतसरसी, जयति दृगादित्रयी सम्यक् ॥78॥
भव-भुजंग को नाग-नाशिनी, दुख-दावानल को जलधार ।
मुक्ति-सुखामृत के सरवर, जयवन्त रहे ये रत्नत्रय ॥
अन्वयार्थ : संसाररूपी सर्प को नाश करने के लिए नागदमनी, दुःखरूपी दावानल को बुझाने के लिए जलवृष्टि और मोक्षरूपी सुखामृत की सरोवरी (तालाब) के समान समीचीन रत्नत्रयी सदा इस लोक में जयवन्त है ।