
सति सन्ति व्रतान्येव, सूनृते वचसि स्थिते ।
भवत्याराधिता सद्भि:, जगत्पूज्या च भारती ॥92॥
सत्य वचन कहने वाले के, उर में व्रत सब करें निवास ।
त्रिभुवन-पूजित सरस्वती का, भी परिणति में हो आवास॥
अन्वयार्थ : जो मनुष्य, सत्य वचन बोलने वाला है अर्थात् सत्य व्रत का पालन करने वाला है, उसके समस्त व्रत विद्यमान रहते हैं अर्थात् सत्यव्रत के पालन करने से ही वह समस्त व्रतों का पालन करने वाला होता है । वह सत्यवादी सज्जन पुरुष, तीन लोक के द्वारा पूज्य सरस्वती को भी सिद्ध कर लेता है अर्थात् सरस्वती भी सत्य बोलने वाले के पास रहती है ।