
आस्तामेतदमुत्र सूनृतवचाः, कालेन यल्लप्स्यते;
सद्भूपत्वसुरत्वसंसृतिसरित्, पाराप्तिमुख्यं फलम् ।
यत्प्राप्नोति यशः शशांकविशदं, शिष्टेषु यन्मान्यतां;
तत्साधुत्वमिहैव जन्मनि परं, तत्केन संवर्ण्यते ॥93॥
नरपति हो या सुरपति अथवा, हो जाए भव-सागर-पार ।
ये फल तो आगामी भव में, सत् वक्ता को होते प्राप्त ॥
किन्तु इसी भव में वे पाते, उज्ज्वल कीर्ति चन्द्र-समान ।
कैसे वर्णन करें सुफल का, सज्जन गण करते सन्मान ॥
अन्वयार्थ : आचार्य कहते हैं कि सत्यवादी मनुष्य, आगामी भवों में श्रेष्ठ चक्रवर्ती राजा बनते हैं, इन्द्रादि फल को प्राप्त करते हैं और सबसे उत्कृष्ट मोक्षरूपी फल को भी प्राप्त कर लेते हैं - यह बात तो दूर रहो, किन्तु इसी भव में वे चन्द्रमा के समान उत्तम कीर्ति को पा लेते हैं । शिष्ट मनुष्य, उनको बड़ी प्रतिष्ठा से देखते हैं, वे सज्जन कहे जाते हैं, इत्यादि नाना प्रकार के उत्तम फल उनको मिलते हैं, जो कि सर्वथा अवर्णनीय हैं; इसलिए सज्जनों को अवश्य ही सत्य बोलना चाहिए ।