+ उत्तम शौचधर्म का धारक परस्त्री और परधन से इच्छारहित -
(आर्या)
यत्परदारार्थादिषु, जन्तुषु निःस्पृहमहिंसकं चेतः ।
दुश्छेद्यान्तर्मलहृत्तदेव शौचं परं नाऽन्यत् ॥94॥
पर-धन नारी में निर्वाञ्छक, वृत्ति अहिंसक सदा रहे ।
अन्तर्मल दुर्भेद्य विनाशक, यही शौच नहिं अन्य कहें ॥
अन्वयार्थ : जो परस्त्री तथा पराये धन में इच्छारहित हैं, किसी भी जीव को मारने की जिनकी भावना नहीं है और जो अत्यन्त दुर्भेद्य लोभ, क्रोधादि मलों का हरण करने वाला है- ऐसा चित्त ही शौचधर्म है, किन्तु उससे भिन्न कोई शौचधर्म नहीं है ।