+ स्त्रियों से प्रीति छोड़ने वाले ही महान -
(मालिनी)
अविरतमिह तावत्, पुण्यभाजो मनुष्याः;
हृदि विरचितरागाः कामिनीनां वसन्ति ।
कथमपि न पुनस्ता, जातु येषां तदंघ्री;
प्रतिदिनमतिनम्रा:, तेपि नित्यं स्तुवन्ति ॥105॥
जो नारी को प्रिय हैं पर, उनमें नहिं है नारी का वास ।
नारी को प्रिय पुण्यवान भी, उन्हें नमें नित शीश नवा ॥
अन्वयार्थ : जो पुरुष, निरन्तर स्त्रियों के हृदय में प्रीति उपजाने वाले हैं अर्थात् जिनको स्त्रियाँ चाहती हैं, वे भी यद्यपि संसार में धन्य हैं, तथापि जिन मनुष्यों के हृदय में स्त्रियाँ स्वप्न में भी निवास नहीं करतीं, वे उनसे भी अधिक धन्य हैं तथा उन वीतरागी पुरुषों के चरण-कमलों को स्त्रियों के प्रिय पात्र, बड़े-बड़े चक्रवर्ती आदि भी सिर झुका कर नमस्कार करते हैं; इसलिए जिन पुरुषों को संसार में अपनी कीर्ति फैलाने की इच्छा है, उनको कदापि स्त्रियों के जाल में नहीं फँसना चाहिए ।