
विण्मूत्रकृमिसंकुले कृतघृणै,-रन्त्रादिभिः पूरिते;
शुक्रासृग्वरयोषितामपि तनु,-र्मातुः कुगर्भेऽजनि ।
साऽपि क्लिष्टरसादिधातुकलिता, पूर्णा मलाद्यैरहो;
चित्रं चन्द्रमुखीति जातमतिभि:, विद्वद्भिरावर्ण्यते ॥114॥
यह नारी-तन नाना कृमि से, भरा मूत्र-विष्टादिक खान ।
घृणाजनक मांसादिक से परिपूर्ण गर्भ में लेता जन्म ॥
उत्तम नारी-तन भी निर्मित, वीर्य और रज से उत्पन्न ।
तो भी नीच कवि कहते हैं, 'चन्द्रमुखी' आश्चर्य महान ॥
अन्वयार्थ : यह स्त्री का शरीर, विष्टा-मूत्र, नाना प्रकार के कीड़ों आदि से व्याप्त, प्रबल घृणा को पैदा करने वाले आँत-मांस आदि से पूरित तथा वीर्य, रक्त आदि से पुष्ट - ऐसे माता के घृणित गर्भ से उत्पन्न हुआ है । स्वयं भी वह स्त्री, नाना प्रकार के खोटे वीर्य-रक्त आदि से बनी हुई है तथा मल आदि से युक्त है तो भी नीच विद्वान् कवि, ऐसी स्त्री को 'चन्द्रमुखी' कहते हैं - यह बड़े आश्चर्य की बात है ।