
कचा यूकावासा, मुखमजिनबद्धास्थिनिचयः;
कुचौ मांसोच्छ्रायौ, जठरमपि विष्ठादिघटिका ।
मलोत्सर्गे यन्त्रं, जघनमबलायाः क्रमयुगं;
तदाधारस्थूणे, किमिह किल रागाय महताम् ॥115॥
केश, जुओं का वास तथा मुख, चर्मयुक्त हाड़ों का जाल ।
स्तन, मांस-पिण्ड हैं एवं जठर, मलादिक का स्थान ॥
योनिस्थल, है मूत्र-वाहिनी, जंघाएँ उसका आधार ।
ऐसी घृणित नारियों से, विद्वान करेंगे कैसे प्यार ?
अन्वयार्थ : स्त्री के केश तो जुओं के घर हैं, मुख चर्म से वेष्टित हाड़ों का समूह है, स्तन मांस के पिण्ड हैं, उदर विष्टा आदि गन्दी चीजों का घर है, योनिस्थान मूत्र आदि के बहने का नाला है और दोनों चरण उस योनिस्थान के ठहरने के लिए खंभों के समान हैं; इसलिए ऐसी घृणित स्त्री में विद्वान् पुरुष, कदापि राग नहीं कर सकते ।