
विहाय व्यामोहं, धनसदनतन्वादिविषये;
कुरुध्वं तत्तूर्णं, किमपि निजकार्यं बत बुधाः ।
न येनेदं जन्म, प्रभवति सुनृत्वादिघटना;
पुन: स्यान्न स्याद्वा, किमपरवचोडम्बरशतै: ॥123॥
पुत्र-धनादिक मोह छोड़, हे बुधजन! ऐसा कार्य करो ।
पुनर्जन्म हो नहीं क्योंकि यह, कुल-गुरु-धर्म मिले न मिलें ॥
अन्वयार्थ : अरे बुद्धिमानों! विशेष कहाँ तक कहें? शीघ्र ही स्त्री-पुत्र-धन-घर आदि पदार्थों से मोह छोड़ कर - ऐसा कोई काम करो, जिससे तुको फिर जन्म न धारण करना पड़े क्योंकि नहीं मालू फिर उत्तम कुल, जिनधर्म की शरण, निर्ग्रन्थ गुरु का उपदेश आदि मिलें या नहीं मिलें ।