+ आत्महितकारी श्रुत का अभ्यास करने में प्रयत्न आवश्यक -
अल्पायुषामल्पधियामिदानीं; कुतः समस्तश्रुतपाठशक्तिः ।
तदत्र मुक्तिं प्रतिबीजमात्र-मभ्यस्यतामात्महितं प्रयत्नात् ॥127॥
अल्प-आयु-बुद्धि होने से शक्ति कहाँ सब श्रुत-अभ्यास ।
अत: मुक्ति के बीज आत्म-हितकारी श्रुत का हो अभ्यास ॥
अन्वयार्थ : इस पंचम काल में ज्ञान आयु आदि के निरन्तर क्षीण होने से मनुष्य, अल्पायु तथा अल्पज्ञान के धारी रह गये हैं, इसलिए वे समस्त श्रुत का अभ्यास नहीं कर सकते; अतः जो पुरुष, मोक्ष के अभिलाषी हैं, उनको मुक्ति के देने वाले तथा आत्मा के हितकारी श्रुत का तो अवश्य ही बड़े प्रयत्न के साथ अभ्यास करना चाहिए ।