+ ज्ञानस्वरूप आत्मा की आराधना का उपदेश -
(आर्या)
तद्धयायत तात्पर्यात्, ज्योतिः सच्चिन्मयं विना यस्मात् ।
सदपि न सत्सति यस्मिन्, निश्चितमाभासते विश्वम् ॥129॥
जिस चैतन्य-ज्योति बिन सत् भी, हो जाता है असत् समान ।
जिसमें जग प्रतिभासित होता, करो उसी ज्योति का ध्यान ॥
अन्वयार्थ : जिस श्रेष्ठ तथा ज्ञानस्वरूप चैतन्य के बिना समस्त पदार्थ विद्यमान होने पर भी अविद्यमान के समान हैं और जिस चैतन्य के होने पर समस्त पदार्थों का प्रकट रीति से प्रतिभास होता है - ऐसे ज्ञानस्वरूपी आत्म-ज्योति की भव्य जीवों को अवश्य आराधना तथा उपासना करनी चाहिए ।