+ आत्मा के वास्तविक स्वरूप का स्याद्वाद पद्धति से अनेकान्तात्मक वर्णन -
(शार्दूलविक्रीडित)
नो शून्यो न जडो न भूतजनितो, नो कर्तृभावं गतो;
नैको न क्षणिको न विश्वविततो, नित्यो न चैकान्ततः ।
आत्मा कायमितिश्चिदेकनिलयः, कर्ता च भोक्ता स्वयं;
संयुक्त: स्थिरताविनाशजननै:, प्रत्येकमेकक्षणे ॥134॥
शून्य नहीं जड़ नहीं न कर्ता, पञ्चभूत से हुआ नहीं ।
नहीं सर्वथा एक क्षणिक, नहिं विश्वव्यापि नहिं नित्य नहीं ॥
तन-प्रमाण चैतन्यरूप यह, कर्ता-भोक्ता स्वयं कहा ।
प्रतिक्षण है उत्पाद-ध्रौव्य-व्ययरूप सदा जिनदेव कहा ॥
अन्वयार्थ : एकान्त से न आत्मा शून्य है, न जड़ है, न पञ्चभूत से उत्पन्न हुआ है, न कर्ता है, न एक है, न क्षणिक है, न लोक-व्यापी है, न नित्य है; किन्तु अपने शरीर के परिमाण है, सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान आदि गुणों का आधार है, अपने कर्मों का कर्ता है, अपने ही कर्मों का भोक्ता है तथा एक ही समय में सदाकाल उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य - इन तीन धर्मों से सहित है ।