
आस्तामन्यगतौ प्रतिक्षणलसद्, दुःखाश्रितायामहो;
देवत्वेऽपि न शान्तिरस्ति भवतो, रम्येऽणिमादिश्रिया ।
यत्तस्मादपि मृत्युकालकलया-ऽधस्ताद्धठात्पात्यसे;
तत्तन्नित्यपदं प्रति प्रतिदिनं, रे जीव! यत्नं कुरु ॥142॥
अन्य गति में प्रतिक्षण होने, वाले दु:ख तो दूर रहो ।
अणिमादिक लक्ष्मी से शोभित देवों को भी शान्ति नहीं ॥
मरण-समय में वे स्वर्गों से, भू पर पटके जाते हैं ।
अत: नित्य शिवपद-प्राप्ति के लिए भव्यजन यत्न करें ॥
अन्वयार्थ : जहाँ प्रतिक्षण दुःख ही दुःख है - ऐसी नरक, तिर्यंचादि गति तो दूर ही रहो, परन्तु जहाँ पर सदा अणिमा-महिमा आदि लक्ष्मी निवास करती हैं - ऐसी देवगति में भी तेरे लिए अंशमात्र भी सुख नहीं है क्योंकि मरण की बेला वहाँ से भी तुझे जबरदस्ती नीचे गिरा देती है अर्थात् मृत्यु के समय स्वर्ग से भी नीचे गिरना पड़ता है; इसलिए हे जीव! तुझे अविनाशी मोक्ष पद के लिए ही सदा प्रयत्न करना चाहिए ।