+ खुजली के रोगी के समान दु:ख में सुख का भ्रम -
(पृथ्वी)
प्रतिक्षणमयं जनो, नियतमुग्रदुःखातुरः;
क्षुधादिभिरभिश्रयंस्तदुपशान्तयेऽन्नादिकम् ।
तदेव मनुते सुखं, भ्रम वशाद्यदेवासुखं;
समुल्लसति कच्छुकारुजि, यथा शिखिस्वेदनम् ॥151॥
क्षुधा आदि से दु:खी जीव, अन्नादिक का आश्रय लेते ।
जैसे खाज खुजा कर प्राणी, भ्रम से उसमें सुख मानें ॥
अन्वयार्थ : जिस प्रकार खाज का रोगी मनुष्य, अग्नि से खाज को सेकने में सुख मानता है, परन्तु अग्नि से सेकना केवल दुःख को ही देने वाला है; उसी प्रकार यह संसारी जीव, शान्ति के लिए अन्न-जल का आश्रय करता है, उस समय यद्यपि वे अन्न-जल आदि पदार्थ दुःखस्वरूप हैं तो भी भ्रम से उनमें सुख मानता है ।