
परमानन्दाऽब्जरसं, सकलविकल्पाऽन्यसु नसस्त्यक्त्वा ।
योगी स यस्य भजते, स्तिमिताऽन्तःकरणषट्चरणः ॥153॥
सकल विकल्पपुष्प को तज कर जिसका निश्चल चित्त-भ्रमर ।
परमानन्द कमल में रमता, वह योगीश्वर पूज्य प्रवर ॥
अन्वयार्थ : जिस योगी का निश्चल मनरूपी भ्रर, समस्त विकल्परूपी अन्य फूलों को छोड़ कर, उत्कृष्ट आनन्द के धारी शुद्धात्मारूपी कमल के रस का सेवन करता है, वही योगीश्वर पूजने योग्य है ।