+ बाह्य तप की व्यर्थता में अनेक युक्तियाँ -
(शार्दूलविक्रीडित)
यद्यन्तर्निहितानि खानि तपसा, बाह्येन किं फल्गुना;
नैवाऽन्तर्निहितानि खानि तपसा, बाह्येन किं फल्गुना ।
यद्यन्तर्बहिरन्यवस्तु तपसा, बाह्येन किं फल्गुना;
नैवाऽन्तर्बहिरन्यवस्तु तपसा, बाह्येन किं फल्गुना ॥156॥
अन्तर्लीन इन्द्रियाँ हों तो, बाह्य तपस्या करना व्यर्थ ।
यदि इन्द्रियाँ बहिर्मुख हों तो, भी है बाह्य तपस्या व्यर्थ ॥
अन्तर्बाह्य अन्य द्रव्यों से, है ममत्व तो तप है व्यर्थ ।
अन्तर्बाह्य अन्य द्रव्यों से, नहिं ममत्व तो तप है व्यर्थ ॥
अन्वयार्थ : बाह्य वस्तु से भिन्न होकर यदि इन्द्रियों का शुद्धात्मा के साथ सम्बन्ध रहा तो भी बाह्य में तप करना व्यर्थ है तथा यदि इन्द्रियों का शुद्धात्मा के साथ सम्बन्ध न रहा तो भी तप करना व्यर्थ है; इसी प्रकार यदि अन्तरंग अथवा बाह्य में अन्य पदार्थों की ममता बनी रही तो भी तप करना व्यर्थ है तथा यदि अन्तरंग एवं बाह्य में किसी पदार्थ से ममता नहीं रही तो भी तप करना व्यर्थ ही है ।