+ साता-असाता से रहित मोक्षपद की कामना -
(वसन्ततिलका)
यज्जायते किमपि कर्मवशादसातं;
सातं च यत्तदनुयायि विकल्पजालम् ।
जातं मनागपि न यत्र पदं तदेव;
देवेन्द्रवन्दितमहं शरणं गतोऽस्मि ॥161॥
जहाँ कर्म-वश साता और असाता आदि विकल्प नहीं ।
उस देवेन्द्र-वन्द्य शिवपद की, अब मैंने तो शरण गही ॥
अन्वयार्थ : जिस मोक्षपद में न तो कर्म के वश से साता होती है, न कर्म के वश से असाता होती है । न उन साता और असाता के अनुसार जहाँ पर किसी प्रकार के विकल्प ही उठते हैं । जिस पद की बड़े-बड़े इन्द्रादिक भी स्तुति करते हैं - ऐसे मोक्षपद की शरण को मैं प्राप्त होना चाहता हूँ ।