+ धर्मरूपी रसायन का सेवन करने के लिए मिथ्यात्वादि का निषेध आवश्यक -
(शार्दूलविक्रीडित)
शश्वज्जन्मजरान्तकालविलसद्, दुःखौघसारीभवत्;
संसारोग्र हारुजोऽपहृतये, ऽनन्तप्रमोदाय वै ।
एतद्धर्मरसायनं ननु बुधाः, कर्तुं मतिश्चेत्तदा;
मिथ्यात्वाऽविरतिप्रमादनिकरः, क्रोधादि सन्त्यज्यताम् ॥165॥
शाश्वत जन्म-जरा-मरणादिक, दुख:दायक रोगों में सार ।
इस संसार महारुज का यदि, करना चाहो पूर्ण विनाश ॥
हे बुध! धर्म-रसायन पीकर, यदि अनन्त सुख को चाहो ।
मिथ्या अविरति अरु प्रमाद, क्रोधादि कषाय-समूह तजो ॥
अन्वयार्थ : भो भव्य जीवों! यदि तुम निरन्तर जन्म, जरा, मरण आदि समस्त दुःखों को देने वाले संसाररूपी भयंकर रोग को दूर करने तथा अनन्त सुख की प्राप्ति के लिए धर्मरूपी रसायन का आश्रय करना चाहते हो तो मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और क्रोधादि कषायों का सर्वथा त्याग करो ।